गणपति अग्रदेव हैं जिन्होंने हर काल में अलग – अलग अवतार लिया है । उनकी शारीरिक संरचना के भी मिश्रित अर्थ हैं । शिव मानस पूजा में उन्हें प्रवण ऊँ कहा गया है । इस ब्र्म्हा अक्षर में मस्तक भाग श्री गणेश का और नीचे का भाग उदर चंद्र बिन्दु लड्डू और मात्रा सूड़ के समान है । चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएं हैं । वे लंबोदर हैं, चराचर श्रृष्टि उनके उदर में विचरित करती है बड़े कान उनकी अधिक ग्राह्य शक्ति एवं छोटी पैनी तेज सूक्ष्म ऑंखे तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं । उनकी नाक महा बुध्दित्व का प्रतीक है ।
गणपति अग्रदेव हैं जिन्होंने हर काल में अलग – अलग अवतार लिया है । उनकी शारीरिक संरचना के भी मिश्रित अर्थ हैं । शिव मानस पूजा में उन्हें प्रवण ऊँ कहा गया है । इस ब्र्म्हा अक्षर में मस्तक भाग श्री गणेश का और नीचे का भाग उदर चंद्र बिन्दु लड्डू और मात्रा सूड़ के समान है । चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएं हैं । वे लंबोदर हैं, चराचर श्रृष्टि उनके उदर में विचरित करती है बड़े कान उनकी अधिक ग्राह्य शक्ति एवं छोटी पैनी तेज सूक्ष्म ऑंखे तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं । उनकी नाक महा बुध्दित्व का प्रतीक है ।
श्री गणेश जी के बारह नामों में प्रमुख है सुमुख एकदन्त, कपील, गजकर्णक, लंबोदर विकट, धूम्रकेतु गणाध्यक्ष, बालचंद्र, गजानन । श्री गणेश के पिता भगवान शिव माता – भगवती पार्वती, भाई श्री कार्तिकेय, बहन-माँ संतोषी, पुत्र दो – शुभ एवं लाभ, पत्नि दो – रिध्दि एवं सिध्दि, प्रिय भोग मोदक, प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल, प्रिय वस्तु दूब,(द्रुव्रा घास), शमी-पत्र, अधिपति – जल तत्व,जलतत्व के प्रमुख अस्त्र पाश, अंकुश ध्यान रहे गणेश चतुर्थ के दिन का चंद्रमा देखना दूषित है एवं गणेश जी को तुलसी पत्र चढ़ाना भी वर्जित है ।
source:vipravarta.org